काला पानी में : फ़्रेंज़ काफ़्का
यह एक चमत्कारी मशीन है', ऑफिसर ने अन्वेषक से कहा और प्रशंसा के भाव से मशीन के चारों ओर नज़रें घुमाईं, जिससे वह अच्छी तरह परिचित था। अन्वेषक ने सज्जनता के चलते कमाण्डेंट के लिए सैनिक द्वारा ऑफिसर की अवज्ञा के परिणामस्वरूप दिए गए मृत्युदण्ड को देखने का आमंत्रण स्वीकार लिया था।
कालापानी की बस्ती ने इस मृत्युदण्ड को देखने में कोई रुचि नहीं दिखलाई थी। कम से कम उस छोटी रेतीली घाटी में जो एक गहरा खोखला-सा गड्ढा है जिसके चारों ओर नुकीले नंगे चट्टानों के टुकड़े हैं, वहाँ ऑफिसर, अन्वेषक और सजायाफ्ता अपराधी के अतिरिक्त कोई भी नहीं था- जो भूखे जानवर की तरह मुँह खोले था, उसके बाल बिखरे हुए थे और चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं और सिपाही के हाथों में भारी चेन थी जो उन छोटी-छोटी चेनों से जुड़ी थी जिनसे अपराधी की पिण्डलियाँ, कलाइयाँ, और गर्दन बंधी थीं।
ये चेनें भी एक-दूसरे से जुड़ी थीं। फिलहाल सजायाफ्ता पालतू कुत्ते जैसा लग रहा था, जिसे देख कोई भी उसे आजाद छोड़ देने के बारे में सोच सकता था, जो एक सीटी बजाने पर सजा भुगतने के दौड़कर हाजिर हो जाएगा।
अन्वेषक ने उस मशीन में कोई विशेष रुचि नहीं दिखलाई, बल्कि सजायाफ्जा को घूम-घूमकर अनासक्त भाव से देखने लगा, जबकि ऑफिसर मशीन को सजा देने के लिए दुरुस्त करने के लिए उसके नीचे लेट कर पहुँचा जहाँ धरती में एक गहरा गड्ढा था, वहाँ से निकल सीढ़ी पर चढ़ ऊपर के हिस्से की जाँच करने में व्यस्त हो गया था।
वैसे तो ये सभी काम किसी मेकेनिक के लिए छोड़ दिए जाने चाहिए थे, लेकिन ऑफिसर विशेष उत्साह के साथ काम में जुटा था, शायद इसलिए कि या तो वह मशीन का प्रशंसक था या फिर कुछ अन्य कारणों से वह इस काम को और किसी से कराने के पक्ष में नहीं था। ‘रेडी', उसने जोर से कहा और सीढि़यों से नीचे उतर आया था।
वह जरूरत से ज्यादा लंगड़ा रहा था और मुँह खोलकर साँस ले रहा था और यूनीफार्म के कॉलर में दो लेडीज रूमाल फँसाए था। “ये यूनीफार्म उष्णकटिबंध के लिहाज से बहुत भारी है न”, अन्वेषक से कहा, हालाँकि उसने ऑफिसर की अपेक्षा के अनुकूल मशीन के बारे में प्रश्न न कर कहा।
“आप ठीक कह रहे हैं” ऑफिसर ने वहाँ रखी बाल्टी में तेल-ग्रीस लगे हाथों को धोते हुए कहा, “लेकिन यह हमें घर की याद दिलाती रहती है, हम अपने घरों को भूलना नहीं चाहते। अच्छा, अब आइए जरा इस मशीन को देखिए”, उसने तुरन्त अन्त में जोड़ा, साथ ही अपने हाथों को तौलिए से पोंछकर मशीन की ओर इशारा किया।
“इतना सब कुछ तो हाथ से ही करना पड़ता है, लेकिन अब इसके बाद सब कुछ मशीन ही करेगी”। अन्वेषक ने सिर हिलाकर सहमति व्यक्त की और उसके पीछे हो लिया। ऑफिसर ने अपने आपको अनहोनी से बचाने की तैयारी करते कहा, “वैसे कभी-कभार कुछ न कुछ गड़बड़ी हो ही जाती है, आप तो जानते ही हैं, वैसे मैं उम्मीद कर रहा हूँ कि आज कोई गड़बड़ी नहीं होगी, लेकिन सम्भावना के लिए तैयार तो रहना ही चाहिए।
यह मशीन बारह घण्टों तक चल सकती है। लेकिन यदि कुछ खामी आती है तो वह कोई छोटी-मोटी ही होती है जिसे तुरन्त सुधारा जा सकता है।”
“आप बैठिए न” कह उसने वहाँ रखी बेंत की कुर्सियों के ढेर में से एक उठा उसे रखते हुए कहा। स्वाभाविक है अन्वेषक इन्कार नहीं कर सकता था। ऑफिसर खुद एक कब्र की कगार पर बैठ गया था, जिस पर उसने नजर यूँ ही डाली, कब्र ज्यादा गहरी न थी। उसके एक ओर वहाँ से निकाली मिट्टी का ढेर था और दूसरी ओर मशीन।